Saturday 14 September 2013

मम्मी घर की बहन चाहिए...

मेरा बेटा नीर बड़ा हो रहा है.  अगले महीने वो 2 साल का हो जाएगा. इन दो सालो में उसमे कई परिवर्तन दिखे लेकिन इसी के साथ  में मेरी सोच में भी गजब का बदलाव आया. कुछ समय पहले तक मेरी सोच थी की आज के ज़माने में एक बच्चे को ही बेहतर परवरिश, और सो कॉल्ड लाइफ स्टाइल दे दी जाए तो मानो पेरेंट्स गंगा नहा लिए. घर ओर बाहर की ज़िम्मेदारी, महंगी होती पड़ाई, बच्चो की बड़ी-बड़ी डिमॅंड्स, उन्हे बड़ा अफ़सर बनाने की चिंता ओर ना जाने कैसी कैसी बाते सोचकर में "वन चाइल्ड कॉन्सेप्ट" से पूरी तरह सहमत थी. लेकिन कुछ दिनो पहले जब बेटे को जेठानी की 5 साल की बेटी को जीजी-जीजी पुकारते, खूब सारा लाड करते देखा तो दिल अचनाक बोल पड़ा की हमें एक और बच्चा नहीं चाहिये तो क्या, पर उसे तो साथ रहने, खाने, खेलने, लड़ने के लिए एक भाई या बहन चाहिए ना. बेटे के बहन के प्रेम को में महसूस कर ही रही थी की अचानक एक दिन फिर जेठानी के बेटी स्कूल से आई ओर मेरा बेटा लगा उसके पीछे डोड़ने. उसने जूते खोले नही की बेटा चल दिया उन्हे रखने. जीजी की खाने की थाली लगी तो झट बेटा भी लपक गया उसकी थाली में से 2-4 कौर खाने के लिए. जीजी को कोई डांटा तो वो तुरंत अपनी तुतलाती भाषा में अपना गुस्सा जता देता. सच कहूं तो बेटे के बहन के लिए इस प्रेम ने मुझे कई बार भावुक किया. लेकिन दिमाग़ कहता की इस महंगाई में 2 बच्चे पालना बहुत मुश्क़िल है ओर बस इस सोच के साथ में अपनी भावनाओ को समेट लेती.
लेकिन कल ही एक पार्टी में जाना हुआ. हम कुछ फ्रेंड्स डिन्नर ले ही रही थी की अचानक एक फ्रेंड का बेटा उसी की उम्र की लड़की का हाथ पकड़ कर लाया ओर कहने लगा की मम्मी ये मेरी कज़िन बहन है ना. मेरी दोस्त ने अपने बेटे से कहा हां.  इस पर उसने तुरंत पूछा कि मम्मी तो मेरी घर वाली बहन कब आएगी. मेरी दोस्त ने कहा ये भी तो आपकी बहन ही है. इस पर वो फिर बोला नही ये नही मुझे वो बहन चाहिए जो हमारे घर में हमारे साथ रहे, हमारे घर में ही सोए ओर मेरे साथ खेले. मेरी दोस्त ओर मेने एक दूसरे को देखा ओर चुप हो गये. शायद इस मौन से हम एक दूसरे को ये समझा रहे थ की जीवन की उलझनो, सामाजिक, आर्थिक, परिवारिक और ऐसी अनगिनत परेशानियो को बालमान क्या समझे.